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नेताजी थानेदार विवाद : यही है पार्टी विद डिफरेंस

   सम्पादकीय

समाज जीवन की भागदौड़ के बीच कईबार ऐसे घटनाक्रम सामने आते हैं जो बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ संकेत दे जाते हैं। अब शुक्रवार को ग्वालियर के एक घटनाक्रम की चर्चा खूब सुनाई दी चूंकि यह घटनाक्रम सत्ता और नोकरशाह के बीच हुई एक तकरार और फिर स्वागत सत्कार तक चलता रहा इस वजह से सोशल मीडिया से लेकर सामान्य जन तक ने इसके जमकर मजे लिए। मामला एक थानेदार द्वारा सत्ताधारी दल के जिला महामंत्री की एक सिफारिश को न माने जाने से बहस के दौर में पहुंचा आवेश इस कदर हावी हुआ की नेताजी की जुवान फिसल गई अशिष्ट शब्दों को थानेदार ने पकड़ लिया और यहां तक धमका डाला की आप जहां हैं मैं वहीं आकर आपको इसी अशिष्टता के साथ जवाब दे सकता हूँ । कुछ ही देर में सत्ता और नोकरशाही के बीच हुई इस गर्मागर्म बहस का ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। फिर क्या था मच गया कोहराम । देखते ही देखते शाम को नेताजी थाने पहुंचे और चन्द मिनटों बाद सोशल मीडिया पर एक तस्वीर और वायरल हुई ,नेताजी थानेदार के गले में फूल माला डालते हुए मुस्कराते हुए उनका सम्मान कर रहे है,कुछ अन्य नेता पास में खड़े हैं।

इस घटनाक्रम को लोग अपने अपने नजरिए से देख रहे हैं । चूंकि वर्तमान में कोरोना संकट के समय देशभर में पुलिस की भूमिका के तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं ऐसे में कई जगह पुलिस निशाने पर भी है ,एक जगह तो पुलिसजन पर ऐसा हमला हुआ की उसका हाथ तक कट गया। कई जगह सामूहिक हमले का शिकार भी पुलिस हो रही है। वो समाज में कोरोना वॉरियर्स बनकर फ्रंट पर काम कर रहे हैं फिर भी समाज के कुछ लोग आवेश के वशीभूत होकर पुलिस को निशाना बना रही है। यह सच है की आम दिनों में पुलिस को लेकर तमाम ऐसे मामले सामने आते हैं जिनसे जनता के बीच उनकी छवि  विपरीत बन गई है। यही वजह है की पुलिस सही भी करती व कहती है तो लोग उसका विरोध करते हैं।

 

नेताजी और थानेदार के घटनाक्रम में भी पुलिस ने ऐसी कोई गलत बात नहीं कही थी की नेताजी को गुस्सा आ जाता और बहस अशिष्टता का स्वरूप ले लेती। किसी भी व्यक्ति का सड़क पर दुर्घटना से निधन हो जाता है,मामला पुलिस रिपोर्ट तक  पहुंचता है तो नियमानुसार पोस्टमार्टम आवश्यक होता है। नेताजी की सिफारिश से जब थानेदार ने इंकार किया तो आवेश भड़क उठा और बात बढ़ गई। यह अलग बात है जन प्रतिनिधि होने के नाते नेताजी की थानेदार को किये सिफारिशी फोन के पीछे अपनी कोई मजबूरी रही होगी।

 

इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में इस बात के लिए सत्ताधारी दल व उससे जुड़ेे नेताओं खासकर उन महाशय जिनके साथ यह वाकया हुआ की तारीफ जरूर की जाना चाहिए की उन्होंने बात को मुद्दा नहीं बनाया । कुछ घण्टे बाद ही सही वे थानेदार की सही बात का स्वागत करने फूलमाला लेकर पहुंचे। शायद यही बात भाजपा जैसे राजनीतिक दल को अन्य पार्टियों से अलग बनाती है यही है पार्टी विद डिफरेंस।

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