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प्रियंका की चकाचौंध में खुद को साबित करने की चुनौती से जूझते ज्योतिरादित्य सिंधिया

                        प्रवीण दुबे

 

पहले मध्यप्रदेश में सरकार गठन के बाद अनदेखी और अब प्रियंका गांधी की चकाचौंध भरी राजनीति के बीच उपस्थिति न दर्ज करा पाने के संकट ने यदि सबसे ज्यादा किसी का नुकसान किया है तो वह है कांग्रेस की नई पीढ़ी के सबसे प्रभावी और स्वच्छ छवि वाले नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया , पहले गांधी परिवार  और दिग्विजय सिंह जैसे चालक नेताओं ने इस युवा नेता का चेहरा आगे कर विधानसभा चुनाव में ग्वालियर अंचल की 34 में से 26 सीटें जीतकर भाजपा को सत्ता से दूर करने में सफलता हासिल की,अकेले ग्वालियर अंचल में ही नहीं पूरे मध्यप्रदेश में  चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष के नाते इस युवा नेता ने अपनी भूमिका में पूरे सौ प्रतिशत अंक हासिल किए पूरे देश ने देखा कि ज्योतिरादित्य की आक्रामक प्रचार शैली के कारण भाजपा निरुत्तर सी नजर आई।

लेकिन सत्ता में आते ही  कैसे कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने ज्योतिरादित्य को दरकिनार करते हुए पीछे ढकेल दिया सबने देखा कि इस अनदेखी को कैसे राहुल गांधी ने अपनी मोन स्वीकृति प्रदान की।

जो ज्योतिरादित्य चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का सबसे सशक्त चेहरा माने जा रहे थे उनको अपने समर्थक विधायकों तक को मंत्रीपद व अच्छे मंत्रालय  दिलाने तक में भोपाल से लेकर दिल्ली तक मशक्कत करनी पड़ी थी। बावजूद इसके सिंधिया पर दिग्गीराजा और कमलनाथ भारी पड़े उनके समर्थकों को हल्के मंत्रालय से ही संतोष करना पड़ा। 

विधानसभा चुनाव के बाद सरकार के गठन तक श्री सिंधिया को दोयम दर्जे का नेता निरूपित किये जाने के बाद अब लोकसभा चुनाव में उनका जादू मध्यप्रदेश में न चल सके इसके लिए एक ओर बड़ी चतुराई से उन्हें मध्यप्रदेश से दूर कर राष्ट्रीय महासचिव का झुनझुना पकड़ाया गया तो दूसरी ओर उन्हें प्रियंका गांधी के साथ जोड़कर उत्तरप्रदेश के एक हिस्से तक सीमित कर दिया गया।

साफ है जिन सिंधिया के पास विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष की कमान थी वे सिंधिया अब लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तरप्रदेश के एक हिस्से तक सिमट कर रह जाएंगे। 

 

इससे भी विचारणीय पक्ष   यह है कि उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में जहां कांग्रेस के सबसे चमकदार और प्रभावी चेहरे के रूप में प्रियंका गांधी पूरी तरह सक्रीय हैं सिंधिया को आखिर कौन पूछेगा ?

मीडिया से लेकर कांग्रेस हाईकमान तक सब प्रियंका के इर्दगिर्द ही नजर आएंगे ऐसे में सिंधिया के सामने खुद के कार्यों को प्रदर्शित करने का संकट खड़ा होगा। इसकी बानगी पिछले कुछ दिनों में दिखाई भी दे रही है, जब मीडिया हो या कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सब जगह प्रियंका प्रियंका की ही धूम है और श्री सिंधिया इस चकाचौंध में कहीं खो से गये हैं।

यहां बताना उपयुक्त होगा कि कांग्रेस हाईकमान अर्थात गांधी परिवार द्वारा सिंधिया परिवार की राजनीतिक अनदेखी करना कोई नई बात नहीं है। ज्योतिरादित्य के पिता स्व. माधवराव सिंधिया भी इसका शिकार होते रहे तमाम राजनीतिक योग्यता और जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय नेता की छवि होने के बावजूद गांधी परिवार ने कभी भी माधवराव सिंधिया को न तो मुख्यमंत्री बनने दिया और न ही प्रधानमंत्री। इतना ही नहीं जैसा कि वर्तमान में भी ज्योतिरादित्य के सामने हो रहा है वैसा ही उनके पिता माधवराव की खिलाफत करने वाले दिग्विजयसिंह को गांधी परिवार ने जमकर समर्थन किया। एकबार तो हालात यहां तक जा पहुंचे थे कि माधवराव को अपनी अलग पार्टी बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

फिलहाल ज्योतिरादित्य ऐसा कुछ करेंगे इसकी सम्भावना दिखाई नहीं देती लेकिन जबसे विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आए हैं और सरकार का गठन हुआ है वे सार्वजनिक रूप से खिन्न और गुस्से का प्रदर्शन अवश्य कर चुके हैं। देखना दिलचस्प होगा कि वे अपनी ही पार्टी में सम्पूर्ण राजनीतिक योग्यता के बावजूद खुद को लगातार हासिये पर डालने और अपने प्रभाव वाले प्रदेश से दूर रखने की कुटिल चालों का कैसे जवाब देते हैं  ?

 

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